सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार की क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज कर दिया। इस पिटीशन में सरकार ने 1984 के भोपाल गैंस कांड के पीड़ितों का मुआवजा बढ़ाने की मांग की थी। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी की बेंच ने कहा कि केस दोबारा खोलने पर मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यूनियन कार्बाइड से जुड़े इस मामले में 2010 में ही क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल हुई थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में ही फैसला सुरक्षित रख लिया था।
बता दें कि केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि 1989 में जब सुप्रीम कोर्ट ने हर्जाना तय किया था, तब 2.05 लाख पीड़ितों को ध्यान में रखा गया था। इन वर्षों में गैस पीड़ितों की संख्या बढ़कर 5.74 लाख से अधिक हो चुकी है। ऐसे में हर्जाना भी बढ़ना चाहिए। यदि सुप्रीम कोर्ट हर्जाना बढ़ने को मान जाता है तो इसका लाभ भोपाल के हजारों गैस पीड़ितों को भी मिलेगा।
दरअसल मामला यह है कि भोपाल में 2-3 दिसंबर की रात यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था। इससे कारण सैकड़ों मौतें हुई थी। हादसे के 39 साल बाद सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एसके कौल की संविधान पीठ ने 1989 में तय किए गए 725 करोड़ रुपये हर्जाने के अतिरिक्त 675.96 करोड़ रुपये हर्जाना दिए जाने की याचिका पर यह फैसला दिया है। यह याचिका केंद्र सरकार ने दिसंबर 2010 में लगाई थी और फैसला 12 साल बाद आया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने डाउ केमिकल्स में साफ किया था कि वह एक रुपया भी ओर देने को तैयार नहीं है।